Srinivas Ki Beimani: Lok-Katha (Tamil Nadu)

Tamil Nadu Folktales in Hindi – तमिलनाडु की लोक कथाएँ

श्रीनिवास की बेईमानी: तमिलनाडु लोक-कथा
पालार नदी के किनारे एक ग्वाला रहता था। उसका नाम था ‘श्रीनिवास।’ वह प्रतिदिन नगर में दूध बेचने जाता था। उसका दूध सदा खालिस(शुद्ध) होता। ग्राहक सदा दूध की तारीफ करते थे किंतु उन दिनों दूध के दाम बेहद कम होते थे। अतः इतनी मेहनत करने पर भी श्रीनिवास को दो समय की पेट-भर रोटी नसीब नहीं होती थी।

एक दिन उसका साला आया। वह एक चतुर और धोखेबाज व्यक्ति था। उसने श्रीनिवास को सलाह दी, ‘क्यों नहीं तुम दूध में पानी मिलाते? सभी तो ऐसा ही करते हैं।’ श्रीनिवास ने दोनों दाँतों से जीभ काटी और कानों को हाथ लगाकर बोला- ‘न बाबा, मैं यह पाप कभी नहीं करूँगा।’

उसके साले ने समझाया, ‘अरे भई, इसमें पाप-पुण्य कहाँ से आ गया? दूध में पानी मिलाओगे तो ज्यादा पैसे मिलेंगे। ज्यादा पैसे आएँगे तो परिवार खुशहाल होगा।’‘हाँ, मुझे भी कांजीवरम की साड़ी पहनने को मिलेगी। बच्चे भी पेट-भरकर दही-भात खाएँगे,’ श्रीनिवास की पत्नी ने भी भाई की हाँ में हाँ मिलाई।

बस, अब क्या था, श्रीनिवास का दिमाग घूम गया। अब दूध में पानी मिलाने लगा। पहले तो वह थोड़ा पानी डालता था किंतु जब लालच बढ़ गया तो वह आधा दूध व आधा पानी मिलाने लगा। ग्राहकों को पता ही नहीं लगा कि श्रीनिवास उन्हें मिलावटी दूध पिला रहा है।

श्रीनिवास की आमदनी बढ़ गई। उसने एक थैली भरकर सिक्के जोड़ लिए। एक दिन उसकी पत्नी ने कहा-‘जाओ जी, बाजार से सबके कपड़े खरीद लाओ।’ श्रीनिवास ने राह के लिए डोसा व सांभर बँधवाया और बाजार की ओर चल पड़ा।

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चलते-चलते उसे भूख लग आई। पेलार नदी समीप ही थी। नहाने का मन हुआ तो उसने कपड़े और सिक्कों की थैली किनारे पर रखी और पानी में कूद गया। नहाकर उसने कपड़े पहने और स्वादिष्ट डोसे खाए। चलते वक्त उसे पैसों की थैली की याद आई। पर यह क्या? वह तो वहाँ थी ही नहीं।

श्रीनिवास ने इधर-उधर नजर दौड़ाई। एक बंदर थैली लिए पेड़ पर बैठा था। श्रीनिवास ने पत्थर से बंदर को डराया तो वह भी उस पर झपटने को तैयार हो गया। हारकर श्रीनिवास वहीं पेड़ तले बैठ गया। बंदर महाराज ने थैली खोली। वह हर सिक्के को दाँत से चबाकर फेंकने लगा।

कुछ सिक्के पानी में गिरे तो कुछ जमीन पर, श्रीनिवास ने जमीन पर गिरे सिक्के बटोरे और वहाँ से भाग लिया। आगे चलकर सिक्के गिने तो वह कुल पूँजी का आधा भाग ही निकले। श्रीनिवास ने अपना माथा पीट लिया। पानी की कमाई पानी में ही चली गई थी। इसलिए कहते हैं, ईमानदारी की कमाई में ही बरकत होती है, चोरी का पैसा सदा मोरी में ही जाता है।

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