Sher Ka Dil: Lok-Katha (Jammu)

Folktales in Hindi – जम्मू/डोगरी की लोक कथाएँ

शेर का दिल: जम्मू/डोगरी लोक-कथा
प्राचीन समय की बात है एक ब्राह्मण था। वह अपने जीवन से बड़ा दुखी रहा करता था। घर में कुछ खाने को नहीं था। स्वयं को खाने के लिए कुछ था ही नहीं तो दूसरों को क्या खिलाता? नाते-रिश्तेदार भी उसी की इज्जत करते हैं जो व्यक्ति धनवान होता है। इन सब चीजों से दुखी होकर ब्राह्मण ने कहीं दूर भाग जाने या किसी नरभक्षी पशु का आहार बन जाने की सोची। इसी सोच में डूबा हुआ वह घने जंगल की ओर निकल गया।

शाम होने को आई। वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया। उसने सोचा कि अभी कोई हिंसक पशु आएगा जो अपनी भूख मिटाने के साथ मेरी जीवन-लीला खत्म करके सारे क्लेश भी दूर कर देगा।

उसी समय उसने देखा कि सामने एक गुफा में से शेर निकला। शेर कुछ रूका। पेड़ पर उसका मंत्री हंस बैठा था जो अपनी बुद्धि, अपने शील-स्वभाव और दूध का दूध और पानी का पानी करने के लिए जग-प्रसिद्ध है।
शेर ने कहा- दीवानजी! आज तो शिकार स्वयं ही सामने आ गया।

हंस ने ब्राह्मण को देखा और सोचने लगा, पता नहीं यह कौन दुखी आदमी है। शेर ने कितने ही जीव मार डाले, आज इस ब्राह्मण को क्यों न बचाऊं? फिर शेर से बोला-मृगराज! यह ब्राह्मण आपका कुल पुरोहित है, आपको ढूंढ़ता-ढूंढ़ता यहां आया है। आपके पूर्वज इनका बड़ा सत्कार करते थे। जाओ, देखते क्या हो, प्रणाम करो। देखना उसे कोई कष्ट न हो। उलटे कुछ संपत्ति दो। क्या याद करेगा कि आपके पास आया था।

See also  Jarul: Lok-Katha (Maharashtra)

शेर भी अपने मंत्री की बात मानता था। झट से गया और ब्राह्मण के पैर छुए और उसे गुफा में ले आया। शेर ने उसकी आवभगत की और फिर एक जगह दिखा दी जहां से ब्राह्मण ने धरती खोदकर दौलत पाई और शेर से अनुमति ले घर लौट आया।

धन-दौलत मिल जाने से ब्राह्मण का दुख-दरिद्र जाता रहा। अब उसका रहन-सहन भी अच्छा हो गया। घर में पशुधन, धन-धान्य आ गया। अब वह प्राय: शेर के पास जाता और हर बार कुछ-न-कुछ ले आता। इस प्रकार वह काफी अमीर हो गया।

एक दिन ब्राह्मण की स्त्री ने कहा-तुम रोज कहते हो कि हमारा नया यजमान बहुत अच्छा है, कभी उसे अपने घर तो बुलाते। इस महीने यजमान गुरु के घर का अन्न खाते हैं, तुम भी उसे निमंत्रण दो। बात ब्राह्मण को जंच गई और वह शेर के पास गया और उसे खाने का न्योता दिया।

शेर ने कहा-रहने दो, हम हुए जंगली जानवर। रात अंधेरे में ही आ सकते हैं। तुम्हें बड़ी असुविधा होगी।

पर ब्राह्मण ने आग्रह किया और शेर ने उसके घर जाना स्वीकार कर लिया। एक दिन ब्राह्मण शेर को अपने साथ ले आया। उसने अपने इस विचित्र यजमान की बड़ी कदर की, पर नई-नई सम्पत्ति पाकर ब्राह्मण की स्त्री को बड़ा गर्व हो गया था। उसने बहुत से पकवान बनाए थे। जब उसने शेर को देखा तो पहले डरी, फिर कुछ घबराई और उसे कुछ सुझाई न दिया कि क्या करे।

ब्राह्मण ने समझाया कि ये कुछ नहीं कहेगा, डरो मत। इसी की कृपा से हमारे दिन फिरे हैं।

See also  Ayodhyakand - Final Meeting With Dashrath

जब वे भाजन के लिए बैठे तो ब्राह्मणी ने अपनी नाक कपड़े से बन्द कर ली। उसे शेर से बहुत दुर्गंध आ रही थी। जब खा चुके तो उसने कहा-अच्छा है तुम्हारा यजमान। मुंह से वह दुर्गंध आ रही थी कि मेरी नाक भी सड़ गई। शेर ने यह बात सुन ली और धीरे से जंगल को निकल गया। कुछ दिन बाद ब्राह्मण फिर शेर के पास गया तो देखा, शेर के तेवर बदले हुए थे। शेर ने कहा-पुरोहित जी। यह लो खड्ग और मारो मेरे सिर पर।

ब्राह्मण ने कहा-क्या बात है महाराज। आज आप कैसी बातें कर रहे हैं।
शेर बोला-नहीं, आज तुम्हें खड्ग का वार करना ही पड़ेगा।
ब्राह्मण ने कहा-नहीं, यह काम मुझसे नहीं होगा।
शेर गरजा-देखता हूं तुम कैसे नहीं करोगे।

ब्राह्मण डर गया और उसने खड्ग उठाया और धीरे से शेर के सिर पर लगा दिया। धार तेज थी, कुछ खून बह निकला। ब्राह्मण हैरान हुआ अपने घर लौट आया।

कई दिन बीत गए। ब्राह्मण डर के मारे उधर न जाता। वह समझा कि शेर पागल हो गया है, पता नहीं अब उसका क्या हाल होगा और अगर मैं गया भी तो न मालूम इस बार क्या कहे।

उधर शेर के मंत्री हंस को किसी शिकारी ने मार डाला। शेर ने कौए को नया मंत्री बनाया। कौए ने अपनी मति के अनुसार शेर को सलाह दी और अपने ढंग पर उसे चलाया।

कई महीने बीत गए, ब्राह्मण को फिर धन की आवश्यकता हुई। उसने पुन: शेर के पास जाने की सोची और एक दिन वह जंगल की ओर गया।

See also  The Good Little Girl by F Anstey

शेर की गुफा के बाहर पास के पेड़ पर कौआ बैठा था। उसने जोर से कांव-कांव करना शुरू किया और इस प्रकार शेर को सूचित किया कि शीघ्रता करो, शिकार फंसा है। शेर ने बाहर आकर देखा उसका अपना पुराहित है। उसे हंसी आ गई।
ऐसे ही एक दिन हंस ने भी उसके आने की सूचना दी थी।

ब्राह्मण को शेर के पास बिना संकोच बैठे और बातें करते देख कौए को बड़ा आश्चर्य हुआ, वह तो उसके मारे जाने की ताक में था। शेर ने ताड़ लिया और ब्राह्मण से कहा-देखो भला, मेरे सिर पर जो तुमने प्रहार किया था, उसका क्या हाल है?
ब्राह्मण ने देखा और कहा-महाराज! वह तो अब पूरी तरह भर गया है, अब ठीक है।

शेर ने कहा-खड्ग का घाव ठीक हो गया, परन्तु जो कुछ तुम्हारी पत्नी ने मेरा अपमान किया था, उसका जख्म अभी भी हरा है। वह नहीं भरा।

ब्राह्मण के तो जैसे पांव के नीचे की मिट्टी निकल गई, वह चुप हो गया। शेर ने
कहा-डरो नहीं, असल में यह है:-

हंसा थे सो चल बसे, काग बने दीवान।
जाओ ब्राह्मण घर अपने, शेर किसका यजमान?

पता नहीं यह कौआ क्या पाप करा दे, अब तुम यहां मत आना। ब्राह्मण ने सोचा जान बची लाखों पाए।
फिर उसे आवश्यकता हुई तो भी उसने मुंह उधर न किया।

Leave a Reply 0

Your email address will not be published. Required fields are marked *