Punjabi Bhojan: Lok-Katha (Kashmir)

पंजाबी भोजन: कश्मीरी लोक-कथा
एक था मिलखासिंह। वह पंजाब का रहने वाला था। उसका एक मित्र कश्मीर की वादी में रहता था। मित्र का नाम था आफताब।

एक बार मिलखासिंह को आफताब के यहाँ जाने का मौका मिला। दोनों मित्र लपककर एक-दूसरे के गले से लग गए।

आफताब ने रसोईघर में जाकर स्वादिष्ट पकवान तैयार करने को कहा और मिलखासिंह के पास बैठ गया। कुछ ही देर में खाने की बुलाहट हुई।
मिलखासिंह ने भरपेट भोजन किया। आफताब ने पूछा, ‘यार, खाना कैसा लगा?’
मिलखा बोला, ‘खाना तो अच्छा था पर ‘साडे पंजाब दीयाँ केहड़ीआं रीसाँ।’ (हमारे पंजाब का मुकाबला नहीं कर सकता)।

आफताब को बात लग गई। रात के भोजन की तैयारी जोर-शोर से की जाने लगी। घर में खुशबू की लपटें उठ रही थीं। रात को खाने की मेज पर गुच्छी की सब्जी से लेकर मांस की कई किसमें भी परोसी गईं।

मिलखासिंह ने खा-पीकर डकार ली तो आफताब ने बेसब्री से पूछा- ‘खाना कैसा लगा, दोस्त?’
‘साडे पंजाब दीयाँ केहड़ीआं रीसाँ।’ मिलखासिंह ने फिर वही जवाब दिया।
आफताब के लिए तो बहुत परेशानी हो गई। वह अपने मित्र के मुँह से कहलवाना चाहता था कि कश्मीरी खाना बहुत लज्जतदार होता है।

वादी के होशियार रसोइए बुलवाए गए। घर में ऐसा हंगामा मच गया मानो किसी बड़ी दावत की तैयारी हो। अगले दिन दोपहर के भोजन में एक-से-एक महँगे और स्वादिष्ट व्यंजन परोसे गए। रोगनजोड़ा, कबाब, करम का साग, केसरिया चावल, खीर आदि पकवानों में से खुशबू की लपटें उठ रही थीं।

काँच के सुंदर प्यालों में कई किस्म के फल रखे गए थे। मिलखासिंह ने भोजन किया और आफताब के पूछने से पहले ही बोला,
‘अरे, ऐसा लगता है, किसी धन्नासेठ की दावत है।’
आफताब के मन को फिर भी तसल्ली न हुई। मिलखासिंह जी पंजाब लौट गए।

See also  The Diary Of A Successful Man by Ernest Dowson

कुछ समय बाद आफताब को पंजाब जाने का अवसर मिला। उसने सोचा-
‘मिलखासिंह के घर जरूर जाऊँगा। देखूँ तो सही, वह क्या खाते हैं?’

मिलखासिंह ने कश्मीरी मित्र का स्वागत किया। थोड़ी ही देर में भोजन का समय हो गया। दोनों मित्र खाना खाने बैठे। मिलखा की पत्नी दो प्लेटों में सरसों का साग और मक्‍की की रोटी ले आई। दो गिलासों में मलाईदार लस्सी भी थी।

आफताब अन्य व्यंजनों की प्रतीक्षा करने लगा। मिलखासिंह बोला, ‘खाओ भई, खाना ठंडा हो रहा है।’

आफताब ने सोचा कि शायद अगले दिन पंजाब के कुछ खास व्यंजन परोसे जाएँगे।

अगले दिन भी वही रोटी और साग परोसे गए। आफताब ने हैरानी से पूछा, ‘मिलखासिंह, तुम तो कहते थे कि “पंजाब दीयाँ केडियाँ रीसाँ। यह तो बिलकुल साधारण भोजन है।’

मिलखासिंह ने हँसकर उत्तर दिया, ‘आफताब भाई, तुम्हारे भोजन के स्वाद में कोई कमी न थी, किंतु वह इतना महँगा था कि आम आदमी की पहुँच से बाहर था। हम गाँववाले सादा भोजन करते हैं, जो कि पौष्टिक भी है और सस्ता भी। यही हमारी सेहत का राज है।’

आफताब जान गया कि मिलखासिंह सही कह रहा था। सादा भोजन ही अच्छे स्वास्थ्य का राज है।

(रचना भोला ‘यामिनी’)

Leave a Reply 0

Your email address will not be published. Required fields are marked *