Orchid Ke Phool: Folk Tale (Arunachal Pradesh)

आर्किड के फूल: अरुणाचल प्रदेश की लोक-कथा
आर्किड और आर्किड जैसे सुन्दर फूलों के सम्बन्ध में लोगों में अनेक प्रकार के विश्वास और किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं।

कहते हैं कि किसी समय एक बड़ा नेक और ईमानदार राजा राज्य करता था। उसके राज्य में ऊँचे-ऊँचे पहाड़, घने जंगल, हरे-भरे बगीचे, कल-कल करती नदियाँ और सुन्दर-सुन्दर पशु-पक्षी थे। राजा अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखता था। अतः उसकी प्रजा बहुत सुखी थी। उसके राज्य में किसी चीज की कमी नहीं थी।

राजा का परिवार बहुत छोटा था-एक रानी और एक राजकुमारी | राजा के कोई बेटा नहीं था। अतः रानी और राज्य के महामन्त्री, सेनापति, राजगुरु आदि ने राजा को सुझाव दिया कि वह दूसरा विवाह कर ले, किन्तु राजा ने उनकी बात नहीं मानी। राजा रानी को बहुत प्यार करता था और किसी भी कीमत पर दूसरा विवाह करना नहीं चाहता था।
धीरे-धीरे कई वर्ष बीत गए।

राजा का जीवन बहुत सुखी था। उसकी बेटी अब बड़ी हो गई थी। राजकुमारी भी अपनी माँ के समान सहृदय, कोमल और अद्वितीय सुन्दरी थी। उसके रूप और सौन्दर्य की चर्चा आसपास के राज्यों में होने लगी थी। राजा के पास आसपास के राजाओं ने अपने राजकुमारों के विवाह प्रस्ताव भेजने आरम्भ कर दिए थे। लेकिन राजकुमारी अभी विवाह की इच्छुक नहीं थी, अतः राजा ने किसी भी विवाह प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया था।

राजकुमारी का महल बहुत शानदार था। उसके महल के पीछे एक हरा-भरा बगीचा था। इस बगीचे में बहुत सुन्दर-सुन्दर वृक्ष थे, जिन पर बड़े स्वादिष्ट फल लगते थे। राजकुमारी प्रतिदिन प्रातःकाल अपनी सखियों के साथ महल के पीछे बगीचे में आ जाती थी और तेज धूप निकलने के पहले तक यहीं रहती थी। तेज धूप होते ही वह महल में आ जाती थी। बगीचे में टहलना राजकुमारी का सबसे प्रिय शौक था।

See also  Makhmali Chappal: Lok-Katha (Iran)

राजकुमारी के महल के बगीचे में एक बावड़ी थी। इसका पानी बहुत साफ और स्वादिष्ट था। महल के लोग इसी बावड़ी का पानी पीते थे। बगीचे में टहलते-टहलते जब राजकुमारी थक जाती थी तो इसी बावड़ी की मुँडेर पर बैठकर आराम करती थी।

एक दिन प्रातःकाल का समय था। राजकुमारी हमेशा की तरह महल के पीछे के बगीचे में टहल रही थी। उसके साथ उसकी दो सखियाँ भी थीं। अचानक राजकुमारी को लगा कि कहीं आसपास बहुत दुर्गन्‍ध है। उसने अपनी सखियों से दुर्गन्‍ध आने की बात कही और बावड़ी की मुँडेर पर आकर बैठ गई। मुँडेर पर बैठते ही राजकुमारी की तबियत और खराब हो गई और वह अचेत हो गई।

राजकुमारी के अचेत होते ही दोनों सखियाँ घबरा गईं। उन्होंने किसी तरह राजकुमारी को सँभाला और उसे उठाकर महल के भीतर ले आईं।

राजकुमारी की एक सेविका ने राजकुमारी के अचेत होने की ख़बर राजा को दी। राजा उस समय दरबार में था। उसे जैसे ही राजकुमारी के अचेत होने का समाचार मिला तो वह राजवैद्य को लेकर राजकुमारी के महल में आ गया।

राजवैद्य ने राजकुमारी का परीक्षण किया। उसकी समझ में बस इतना आया कि राजकुमारी की बेहोशी का कारण कोई दुर्गन्‍ध है। राजकुमारी की सखियों ने भी राजा के सामने राजवैद्य को बताया कि राजकुमारी ने अचेत होने से पहले दुर्गन्‍ध की शिकायत की थी।

राजा ने यह बात मालूम होते ही अपने कई सैनिकों को बुलाया और उन्हें दुर्गन्‍ध का कारण मालूम करने के लिए राजकुमारी के बगीचे में भेजा।

सैनिकों ने बगीचे का चप्पा-चप्पा छान मारा, लेकिन उन्हें कुछ भी नहीं मिला। अचानक एक सैनिक की दृष्टि मरे हुए एक मोटे-तगड़े अधखाए चूहे पर पड़ी। इस चूहे से हल्की-हल्की दुर्गन्ध भी आ रही थी। सम्भवतः रात को बिल्ली अथवा कोई पक्षी चूहा ले आया होगा और आधा खाकर राजकुमारी के बगीचे में छोड़ गया होगा।
सेवकों ने तुरन्त जाकर राजा को खबर दी।

See also  Sundarkand - Hanuman Enters to the Lanka

राजा ने शहर के बाहर चूहे को जलाकर जमीन में गाड़ने का हुक्म दिया और राजकुमारी के सिर पर स्नेह से हाथ फेरने लगे। दोपहर हो चुकी थी और राजकुमारी अभी तक अचेत थी।
धीरे-धीरे एक सप्ताह हो गया।

राजकुमारी को अभी तक होश नहीं आया था। राजवैद्य उसे तरह-तरह की औषधियाँ दे रहे थे, लेकिन उस पर किसी भी औषधि का कोई प्रभाव नहीं पड़ा था। राजा-रानी और राज्य के सभी लोग बहुत दुखी थे और राजकुमारी के शीघ्र होश में आने के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे।

इसी तरह एक सप्ताह और बीत गया। लेकिन राजकुमारी को होश नहीं आया। इस मध्य राजवैद्य ने अपने राज्य के अन्य वैद्यों तथा पड़ोसी राज्यों के वैद्यों को भी बुलाकर उनसे परामर्श किया और राजकुमारी को बहुत प्रभावशाली औषधियाँ दीं, लेकिन सभी औषधियाँ बेअसर रहीं। राजा और रानी दो सप्ताह से राजकुमारी के पास ही बैठे हुए थे। उनसे राजकुमारी की हालत देखी नहीं जा रही थी। राजकुमारी बिना कुछ खाए पिए दो सप्ताह से अचेत पड़ी थी। राजवैद्य और उसके साथी वैद्यों की औषधियों को बेअसर होता देखकर राजा-रानी की चिन्ता बढ़ती जा रही थी। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें और क्या न करें।

इसी तरह एक महीना बीत गया। राजकुमारी अभी भी अचेत थी। उसका सुन्दर गुलाबी चेहरा पीला पड़ गया था एवं आँखों के चारों ओर कालिमा-सी छा गई थी। राजा-रानी, राजवैद्य और उसके साथी वैद्य सभी हिम्मत हार चुके थे। अब सभी को केवल ईश्वर का सहारा रह गया था।

एक विशाल कक्ष के मध्य पड़े पलंग पर राजकुमारी निर्जीव-सी पड़ी थी। उसके पास रानी और राजा बैठे थे। राजकुमारी से कुछ दूरी पर खड़े राजवैद्य, महामन्त्री, सेनापति, राजपुरोहित आदि आपस में राजकुमारी की बीमारी के सम्बन्ध में विचार-विमर्श कर रहे थे। अचानक महामन्त्री के मस्तिष्क में एक विचार आया।

See also  The Wedding Knell by Nathaniel Hawthorne

महामन्त्री तुरन्त अपने स्थान से उठा और राजा के पास पहुँचकर हाथ बाँधकर खड़ा हो गया। महामन्त्री ने राजा को सुझाव दिया कि वह अपने राज्य में और आसपास के राज्यों में यह डुग्गी पिटवा दें कि जो व्यक्ति राजकुमारी को ठीक कर देगा उसे सोने की एक लाख मोहरें पुरस्कार में दी जाएँगी।

राजा को महामन्त्री का यह सुझाव अच्छा लगा। उसने इस सुझाव को और भी आकर्षक बनाते हुए महामन्त्री से कहा कि वह यह डुग्गी पिटवा दे कि जो व्यक्ति राजकुमारी को ठीक कर देगा उसे आधा राज्य पुरस्कार में दिया जाएगा।

महामन्त्री ने राजा की आज्ञा पाकर अपने राज्य में और आसपास के राज्यों में यह डुग्गी पिटवा दी और पुरस्कार में आधे राज्य की घोषणा कर दी।

अगले दिन से ही एक से एक बढ़कर अनुभवी वैद्य आने लगे। वे आधे राज्य के लालच में अच्छी से अच्छी औषधि राजकुमारी को देते, किन्तु कोई लाभ नहीं होता। अन्त में वे वापस लौट जाते।

यह क्रम पन्द्रह दिन तक चलता रहा । एक लम्बा समय बीत चुका था। राजकुमारी अभी भी अचेत थी। उसकी स्थिति में अंशमात्र भी सुधार नहीं हुआ था। राजा-रानी, महामन्त्री, सेनापति, राजवैद्य, राजपुरोहित सभी निराश हो चुके थे। अब राजकुमारी के ठीक होने की कोई आशा नहीं रह गई थी।

प्रात:काल का समय था।
अचानक एक सेवक ने राजकुमारी के महल में प्रवेश किया और बताया कि एक परदेशी युवक आया है। उसका दावा है कि वह राजकुमारी को ठीक कर देगा।

राजा को आशा की एक किरण दिखाई दी। उसने सैनिक को आदेश दिया कि वह पूरे सम्मान के साथ नवयुवक को ले आए। सैनिक ने राजा की आज्ञा का पालन किया और नवयुवक को महल के भीतर ले आया।

See also  The Fair One With Golden Locks by Dinah M Mulock Craik

राजा ने नवयवुक को देखा तो देखता ही रह गया। नवयुवक बीस-बाईस वर्ष की आयु का था। वह राजकुमारों के समान सौम्य और सुन्दर था। नवयुवक के चेहरे पर अजीब-सा आकर्षण और आत्मविश्वास था। राजा के साथ ही राजा के आसपास के लोग भी नवयुवक को बड़े ध्यान से देख रहे थे।

नवयुवक ने सर्वप्रथम राजा और रानी का अभिवादन किया और इसके बाद उनसे पूरी बात बताने को कहा। राजा के स्थान पर राजकुमारी की सहेली ने नवयुवक को राजकुमारी के महल के बगीचे में घूमने और दुर्गन्‍ध आने से लेकर अचेत होने तक की कहानी सुना दी।

नवयुवक पूरी बात ध्यान से सुनता रहा। इसके बाद उसने राजकुमारी को बगीचे में ले चलने के लिए कहा।

राजा ने नवयुवक से कुछ नहीं कहा। उसने राजकुमारी की सेविकाओं को आदेश दिया कि बगीचे में राजकुमारी के लिए आरामदायक बिस्तर लगाया जाए और फिर राजकुमारी को बगीचे में पहुँचाया जाए।

राजा की आज्ञा का तुरन्त पालन हुआ और बगीचे में शानदार बिस्तर लगा दिया गया। इसके बाद चार सेविकाओं ने राजकुमारी को उठाकर बगीचे में पहुँचा दिया।
नवयुवक ने राजकुमारी का बिस्तर एक वृक्ष के नीचे लगवाया था।

बसन्‍त के दिन थे। प्रातःकाल की हल्की-हल्की धूप बहुत अच्छी लग रही थी। राजकुमारी एक वृक्ष के नीचे लगे बिस्तर पर अचेत पड़ी थी। उसके चारों ओर राजा-रानी और राज्य के अन्य लोग खड़े थे। सभी की दृष्टि नवयुवक पर थी।

अचानक नवयुवक ने दोनों आँखें बन्द करके अपने हाथ आसमान की ओर उठाए और कुछ बुदबुदाने लगा। सम्भवतः वह ईश्वर की प्रार्थना कर रहा था। इसके बाद उसने अपने कपड़ों के भीतर से एक बाँसुरी निकाली और बजाने लगा।
बाँसुरी की आवाज में दैवीय आनन्द था । उसकी आवाज में ऐसा जादू था कि सभी खो गए।

See also  Nagurai Aur Nakhlipi: Lok-Katha (Tripura)

अचानक एक चमत्कार हुआ । राजकुमारी जिस वृक्ष के नीचे लेटी थी वह सुगन्धित फूलों से भर उठा और उसके फूल राजकुमारी पर गिरने लगे।
अब नवयुवक बगीचे में घूम-घूमकर बाँसुरी बजाने लगा। वह बाँसुरी बजाते हुए जिस वृक्ष के नीचे से गुजरता वह वृक्ष फूलों से लद जाता।

इसी समय राजकुमारी को होश आ गया। वह उठकर बैठ गई और बगीचे में चारों ओर फैले हुए फूलों को आश्चर्य से देखने लगी। इसके पहले राजकुमारी अथवा किसी ने भी ऐसे फूल नहीं देखे थे।

राजा-रानी और राज्य के सभी लोग खुश हो गए। वे राजकुमारी के हालचाल पूछने लगे और नवयुवक को कुछ देर के लिए भूल से गए। जब उन्हें नवयुवक की याद आई तो वह जा चुका था। राजा और उसके सेवकों ने नवयुवक को ढूँढ़ने का बहुत प्रयास किया, किन्तु वह नहीं मिला।

अगले दिन सभी ने देखा। राज्य के सारे वृक्षों पर रंग-बिरंगे फूल खिले थे और उनकी सुगन्ध से पूरा वातावरण महक रहा था।

कहते हैं कि यह नवयुवक प्रतिवर्ष बसन्त में बाँसुरी बजाता हुआ निकलता है, उसकी बाँसुरी की आवाज से सभी वृक्ष फूलों से लद जाते हैं और चारों ओर मोहक सुगन्ध फैल जाती है।

Leave a Reply 0

Your email address will not be published. Required fields are marked *