Kachnar: Lok-Katha (Bihar)

Bihar Folktales in Hindi – बिहार की लोक कथाएँ

कचनार: लोक-कथा (बिहार)
(कचनार बिहार का राज्य पृष्प है)

पर्वतीय अंचलों और मैदानी भागों में बसे आदिवासियों में कचनार के सम्बन्ध में अनेक प्रकार के विश्वास तथा किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। इसे कहीं एक साधु बताया गया है तो कहीं एक अभिशप्त सुन्दरी माना गया है। कालबेलियों में कचनार के सम्बन्ध में एक रोचक किंवदन्ती प्रचलित है। कालबेलियों को सामान्य बोलचाल की भाषा में सपेरा कहते हैं। ये लोग तरह-तरह के साँप पालते हैं और इनका प्रदर्शन करके अपनी आजीविका चलाते हैं।

कहते हैं कि किसी गाँव में एक सपेरा रहता था। वह हमेशा जंगल जाता और जंगल से तरह-तरह के साँप पकड़कर लाता था। उसके पास हमेशा कोबरा, घोड़ा पछाड़ जैसे साँप रहते थे। सपेरा शहर जाकर साँपों का प्रदर्शन करता था। उसे बहुत अच्छी मउहर (बीन) बजानी आती थी। वह अपनी मउहर से तरह-तरह के गीतों की धुनें निकाल लेता था। सपेरा जब कभी शहर की किसी सड़क के किनारे अथवा बस्ती में बीन बजाते हुए साँपों का प्रदर्शन करता तो लोगों की भारी भीड़ जमा हो जाती। कुछ लोग उसके साँप देखने इकट्ठे हो जाते तो कुछ उसकी मउहर सुनने के लिए। इस प्रकार सपेरे को अच्छी खासी आमदनी हो जाती थी।

सपेरा जब कभी भी जंगल जाकर साँप पकड़ता था तो साँप को एक निश्चित समय बाद जंगल में छोड़ने का वादा करता था। वह जंगल में साँप को देखते ही कहता-“नागराज! मैं तुम्हें पँच महीनों के लिए साथ ले चलना चाहता हूँ। पाँच महीने पूरे होते ही मैं तुम्हें लाकर यहीं छोड़ दूँगा। यह इस सपेरे का वचन है ।” सपेरे के शब्दों में न जाने कैसा जादू था कि साँप सम्मोहित होकर अपने स्थान पर पड़ा रह जाता। सपेरा जाता, साँप के सामने धरती का स्पर्श करता, साँप को पकड़कर पिटारी में रखता और अपने घर वापस आ जाता। सपेरा अपने साँपों का बहुत ध्यान रखता था। वह उन्हें तरह-तरह के मेढक, मछलियाँ तथा कीड़े-मकोड़े खिलाता था और वचन के अनुसार समय पूरा होने पर उन्हें जंगल में उसी स्थान पर छोड़ आता था, जहाँ से पकड़ता था।

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सपेरे के पास एक बहुत पुराना नाग था। वह इस नाग को देवता मानता था और प्रतिदिन इसकी पूजा करता था। उसने यह नाग बीस वर्ष पहले उस समय पकड़ा था, जब वह जवान था और उसका विवाह भी नहीं हुआ था। इस नाग के घर में आते ही सपेरे के दिन बदल गए। उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी हो गई। उसका विवाह हो गया और फिर उसके तीन बेटियाँ भी हो गईं। उसके खानदान में किसी के बेटियाँ नहीं थीं। अतः तीन-तीन बेटियाँ हो जाने से वह बड़ा खुश था। बेटियाँ उसका सभी तरह से ध्यान रखती थीं।

सपेरा अब वृद्ध हो चला था। वह नाग को एक वर्ष का वचन देकर घर लाया था, लेकिन बीस साल हो जाने के बाद भी उसने नाग को नहीं छोड़ा था। सपेरे को लगता था कि यदि उसने नाग को जंगल ले जाकर छोड़ दिया तो पहले की तरह उसके बुरे

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अगले दिन जब गाँववाले उस स्थान पर पहुँचे, जहाँ सपेरे को गाड़ा था और चबूतरा बनाया था, तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। गाँववालों द्वारा बनाया गया चबूतरा अदृश्य हो चुका था और उसके स्थान पर कचनार का एक वृक्ष लहरा रहा था।

बसन्‍त ऋतु आ चुकी थी। आसपास के सभी वृक्षों पर सुन्दर-सुन्दर फूल खिले हुए थे, किन्तु कचनार के वृक्ष पर एक भी फूल नहीं था।

गाँववालों ने सपेरे के घर आकर यह बात उसकी छोटी बेटी को बताई। सपेरे की बड़ी और मेंझली बेटी अभी भी, नाग के विष के प्रभाव से अचेत थीं।

सपेरे की छोटी बेटी ने जब यह सुना तो भागी-भागी उस स्थान पर पहुँची, जहाँ सपेरे को जमीन के नीचे गाड़ा था। उसके साथ कुछ गाँववाले भी थे।

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छोटी बेटी को भी बड़ा आश्चर्य हुआ। गाँववालों ने उससे ठीक ही कहा था। जिस स्थान पर सपेरे को गाड़कर चबूतरा बनाया गया था, उस स्थान से चबूतरा गायब था और उस स्थान पर कचनार का वृक्ष लहरा रहा था।

छोटी बेटी गाँववालों के साथ इस अद्भुत दृश्य को देख रही थी कि अचानक न जाने कहाँ से वह नाग प्रकट हुआ और छोटी बेटी की ओर बढ़ा।
छोटी बेटी भय से चीखी और बचने के लिए कचनार वृक्ष से लिपट गई।

फिर एक चमत्कार हुआ और बेटी अदृश्य होकर एक सफेद फूल बन गई। यह फूल उसी कचनार वृक्ष पर खिला था, जिससे वह लिपटी थी। नाग भी कहीं अदृश्य हो चुका था। गाँववालों ने इसे ईश्वर का चमत्कार समझा और गाँव वापस आ गए।

धीरे-धीरे एक वर्ष और बीत गया और बसन्‍त आ गया। अब सपेरेवाले चबूतरे के पास एक नया कचनार निकल आया था।

सपेरे की बड़ी बेटी अभी भी अचेत थी लेकिन मँझली बेटी को होश आ गया था। उसे गाँववालों ने उसके पिता की मौत, चबूतरा बनाने, चबूतरा गायब होने, चबूतरे के स्थान पर कचनार वृक्ष प्रकट होने तथा छोटी बहन के फूल बनने की बातें बताईं।

मँझली बेटी को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने दो-चार गाँववालों को साथ लिया और इस रहस्यमय कचनार वृक्ष के पास आ पहुँची।

मँझली बेटी को कचनार वृक्ष के पास पहुँचे कुछ पल भी नहीं गुजरे थे कि वही पुराना नाग न जाने कहाँ से प्रकट हो गया और फुफकारता हुआ मँझली बेटी की ओर बढ़ा!
मँझली बेटी भय से चीखी और नए कचनार से आकर लिपट गई।

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अचानक फिर से एक चमत्कार हुआ। गाँववालों के देखते-देखते लड़की पीले रंग का फूल बन गई। इस मध्य नाग भी अदृश्य हो गया। गाँववाले वापस अपने घर लौट गए।

धीरे-धीरे एक साल और बीत गया। बसन्‍त का समय था। सपेरे की बड़ी बेटी को भी होश आ गया था। उसके होश में आते ही गाँववालों ने उसे पूरी कहानी सुनाई। अपनी दोनों बहनों के समान बड़ी बेटी को भी बड़ा आश्चर्य हुआ और वह रहस्यमय कचनार और फूलों को देखने चल पड़ी। उसके साथ गाँव के कुछ लोग भी थे । गाँववालों ने वहाँ पर पहुँचकर देखा कि पहला कचनार वृक्ष सफेद फूलों से और दूसरा कचनार वृक्ष पीले फूलों से लद गया है एवं इन दोनों वृक्षों के पास इन दोनों के समान ही एक तीसरा कचनार वृक्ष प्रकट हो गया है, किन्तु तीसरे कचनार वृक्ष पर फूल नहीं थे।

बड़ी बेटी ने भी यह सब देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। उसे इस बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ऐसा भी हो सकता है।

अचानक फिर वही नाग प्रकट हुआ और फुफकारता हुआ बड़ी तेजी से बड़ी बेटी की ओर बढ़ा। बड़ी बेटी भय से चीखी और अपने पास खड़े कचनार के तीसरे वृक्ष से लिपट गई।

एक बार फिर चमत्कार हुआ। बड़ी बेटी नीला बैंगनीपन लिए लाल रंग के फूल में बदल गई। इसी मध्य नाग भी कहीं अदृश्य हो गया। गाँववालों ने इसे भी पहले की तरह ईश्वरीय चमत्कार समझा और अपने-अपने घर वापस आ गए।

एक वर्ष बाद अगले बसन्त के समय तीनों वृक्षों के पास कचनार का एक अभिनव वृक्ष दिखाई पड़ा। इस वृक्ष का प्रत्येक फूल सफेद, गुलाबी, लाल, बैंगनी रंगवाला था।

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कालबेलियों का विश्वास है कि सपेरे के शरीर से अधिक विष पी लेने के कारण बड़ी लड़की नीला बैंगनीपन लिए लाल रंग का फूल बनी। मँझली लड़की ने कम विष पिया था अतः वह पीले रंग का फूल बनी। सबसे छोटी बेटी विष नहीं पी सकी थी। इसलिए वह सफेद रंग का फूल बनी । कालबेलियों के अनुसार सपेरे की मौत बसन्‍त ऋतु में हुई थी और बसन्‍त में ही उसकी तीनों बेटियाँ फूल बनी थीं। इसलिए अभी भी बसन्‍त के समय कचनार के वृक्षों पर तीन तरह के फूल खिलते हैं। कचनार के चौथे वृक्ष के विषय में उनका विश्वास है कि सपेरा और उसकी सभी बेटियाँ अधिक समय तक अलग-अलग नहीं रहे और एक वर्ष में ही तीनों एक हो गए। इसीलिए कालबेलिया चौथे वृक्ष को ही असली कचनार वृक्ष मानते हैं।

(डॉ. परशुराम शुक्ल की पुस्तक ‘भारत का राष्ट्रीय
पुष्प और राज्यों के राज्य पुष्प’ से साभार)

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