Kachhue Aur Bandron Ki Kahani : Lok-Katha (Assam)

कछुए और बन्दरों की कहानी : असमिया लोक-कथा
बहुत दिन पहले की बात है, कि एक बार एक कछुआ एक अजनबी शहर में नमक खरीदने गया।

जब वह नमक खरीद कर वापस लौट रहा था तो उसने देखा कि बहुत सारे बन्दर एक पेड़ पर चढ़े फल खा रहे थे। उन फलों के देख कर उसके मुँह में पानी आ गया सो उसने उन बन्दरों से कुछ फल माँगे।

बन्दरों ने उसको कुछ फल तोड़ कर नीचे फेंक दिये। कछुए ने वे फल खाये तो उसको वे बहुत मीठे लगे सो कछुए ने उनको कुछ और फल फेंकने के लिये कहा तो बन्दरों ने जवाब दिया कि अगर वह और फल खाना चाहता है तो वह पेड़ पर चढ़े और अपने आप फल तोड़ कर खाये। वे अब उसको और फल नीचे नहीं फेंकेंगे। कछुआ बोला कि वह पेड़ पर नहीं चढ़ सकता इसलिये अगर बन्दर उसके लिये फल नीचे फेंक दें तो उनकी बड़ी मेहरबानी होगी।

इस पर बन्दर बोले कि अगर वह खुद पेड़ पर नहीं चढ़ सकता तो कोई बात नहीं। वह अगर चाहे तो वे उसको उठा कर पेड़ के ऊपर ला सकते थे। कछुआ राजी हो गया।

इस पर कुछ बन्दर पेड़ से नीचे उतरे और उस कछुए को उठा कर ऊपर पेड़ के ऊपर बिठा दिया। वहाँ बैठ कर सबने खूब फल खाये।

जब बन्दर फल खा चुके तो वे कछुए को बिना बताये और उसको नीचे लाये बिना ही पेड़ पर से नीचे उतर आये। उन्होंने कछुए का नमक भी उठा लिया और उसको ले कर वहाँ से चले गये।

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जब कछुए ने देखा कि वह पेड़ पर अकेला ही रह गया तो वह रोने लगा। उसकी इतनी भी हिम्मत नहीं हुई कि वह पेड़ पर से कूद पड़े।

डर के मारे उसका रोना बढ़ गया और वह इतना रोया इतना रोया कि उसकी आँखों से आँसू बहने लगे और नाक से पानी। यह सब भी इतना बहा कि पेड़ की जड़ के पास एक छोटा सा नाला बन गया।

उसी समय वहाँ एक प्यासा हिरन आया और उसने उस नाले में से पानी पिया तो बोला — “ओह कितना अच्छा पानी है इस नाले का।”

कछुआ यह सुनते ही तुरन्त बोला — “यह नाला नहीं है यह तो मेरे आँसू हैं।”

फिर उसने हिरन को बताया कि वह क्यों रो रहा था। कछुए की कहानी सुन कर हिरन ने कहा — “कछुए भाई, तुम मेरी कमर पर कूद जाओ। मैं तुमको अपनी कमर पर ले सकता हूँ।”

कछुआ बोला — “तुम्हारी कमर तो केवल चार अंगुल चौड़ी है मुझे उस पर कूदने में डर लगता है।” और कछुआ हिरन की कमर पर नहीं कूदा।

उसी समय वहाँ पर एक बारहसिंगा आया। उसने भी उस नाले का पानी पिया और उस पानी की बड़ी तारीफ की। कछुआ फिर बोला — “यह नाले का पानी नहीं है यह तो मेरे आँसू हैं।” फिर उसने बारहसिंगे को भी बताया कि वह क्यों रो रहा था। बारहसिंगा भी बोला — “आओ कछुए भाई , तुम चिन्ता न करो तुम मेरी कमर पर कूद जाओ।”

कछुआ बोला — “तुम्हारी कमर तो केवल दो हाथ चौड़ी है मुझे उस पर कूदने में डर लगता है।” सो कछुआ बारहसिंगे की कमर पर भी नहीं कूदा।

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तभी वहाँ से एक हाथी गुजरा। उसने भी उस नाले का पानी पिया और नाले के पानी की बहुत तारीफ की। कछुआ फिर बोला — “हाथी भाई , यह नाले का पानी नहीं है यह तो मेरे आँसू हैं।”

फिर उसने हाथी को भी बताया कि वह क्यों रो रहा था। कछुए की दुखभरी कहानी सुन कर हाथी भी दुखी हो गया। उसने भी कछुए से कहा — “कछुए भाई , मेरी पीठ तो बहुत बड़ी है तुम मेरी पीठ पर कूद जाओ। तुम यहाँ आराम से कूद सकते हो।”

कछुए को भी लगा कि वह हाथी की पीठ पर आराम से कूद सकता है सो वह हाथी की पीठ पर कूद गया। अब क्योंकि कछुआ हाथी की रीढ़ की हड्डी पर कूदा था सो उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गयी और वह मर गया। कछुए ने पेट भर कर हाथी का माँस खाया और फिर बन्दरों से बदला लेने के लिये बन्दरों के गाँव की ओर चल दिया।

कुछ ही देर में कछुआ बन्दरों के खेतों के पास आ पहुँचा। वहाँ जा कर वह टट्टी की और आगे बढ़ गया। कुछ देर के बाद बन्दर वहाँ आये उन्होंने समझा कि वह माँस पड़ा था सो वे उसे सब का सब खा गये।

कछुआ यह सब देख रहा था। वह बोला — “कुछ देर पहले ही तो तुम लोग मुझे पेड़ पर छोड़ आये थे और अब तुमने मेरी टट्टी खा ली?”

बन्दरों ने जब यह सुना तो उनको बड़ा गुस्सा आया। वे लोग कछुए के घर के पास पहुँचे और वहाँ टट्टी करके एक टोकरी में छिप कर बैठ गये।

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कुछ देर बाद कछुआ अपने घर से बाहर निकला तो उसने अपने घर के बाहर बन्दरों की टट्टी देखी तो वह बन्दरों को ढूँढने लगा। उसने सोचा कि बन्दर भी यहीं कहीं पास में ही छिपे होंगे। उसने बन्दरों को ढूँढा तो देखा कि सारे बन्दर एक टोकरी में छिपे बैठे हैं उसने उन सारे बन्दरों को उसी टोकरी से बाँध दिया और उस टोकरी को नीचे लुढ़का दिया।

सारे बन्दर मर गये केवल एक बँदरिया को छोड़ कर। असल में उस बँदरिया ने गिरते समय एक बेल को पकड़ लिया था। वह बँदरिया गर्भवती थी।

कहते हैं कि आज जितने भी बन्दर दुनियाँ में मौजूद हैं हैं वे सब उसी बँदरिया की सन्तान हैं।

(सुषमा गुप्ता)

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