Ka Sohlyngngem : Lok-Katha (Meghalaya)

Meghalaya Folktales in Hindi – मेघालय की लोक कथाएँ

का सोहलिंगेम : मेघालय की लोक-कथा
(सोहलिंगेम खासी क्षेत्र में पाया जानेवाला एक बड़ा पक्षी होता है, जिसका आकार मुर्गा की तरह होता है। उसे का ‘सोहलिंगेम’ भी कहते हैं। यह पक्षी जब बोलता है तो उसकी आवाज किसी रोते हुए व्यक्ति की आवाज जैसी लगती है। किसी बीमार और रोगी व्यक्ति की तरह अत्यंत कमजोर और दयनीय स्वर में यह पक्षी अपने घोसले से निरीह आवाज निकालता है। ऐसा लगता है मानो किसी महीन दर्द में डूबा हुआ हो। वस्तुतः इसकी इस पीड़ा भरी आवाज के पीछे एक प्रेमकथा है।)

बहुत दिनों की बात है रेन्नियाव नामक एक बहुत सुंदर पक्षी का सोहलिंगेम को बहुत पसंद करता था। उसकी सुंदरता पर का सोहलिंगेम भी पूरी तरह मोहित थी। दोनों आपस में खूब प्रेम किया करते थे। धीरे-धीरे उनका प्रेम और भी प्रगाढ़ होता गया, परंतु सोहलिंगेम के माता-पिता उसके इस रिश्ते से खुश नहीं थे। उन्हें लगता था कि अन्य प्रजाति के पक्षियों से संबंध स्थापित करना ठीक नहीं है। वे अपनी बेटी को समझाते रहे कि अन्य प्रजाति के पक्षियों से संबंध रखने का अर्थ केवल धोखा खाना है। साथ ही वे उसे सलाह देते कि वह अगर अपने ही बराबर के किसी पक्षी के साथ संबंध स्थापित करें तो अधिक उचित होगा। उनकी बात सुनकर सोहलिंगेम का दिल पीड़ा और दर्द से भर जाता था, क्योंकि वह अपने प्यार को किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती थी, परंतु वह बहुत चिंतित रहती, क्योंकि वह अपने माता पिता को भी दु:खी नहीं करना चाहती थी।

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अगली बार जब वह अपने प्रेमी पक्षी से मिली तो उसने पूरी स्थिति उससे बताई और कहा कि उसके माता-पिता उससे बहुत प्यार करते हैं और वह किसी भी स्थिति में अपने माता पिता को दुःखी नहीं करना चाहती है। उ रेन्नियाव भी नहीं चाहता था कि उसके कारण का सोहलिंगेम का संबंध उसके माता-पिता से टूट जाए, अत: बहुत दुःखी मन से उसने कहा कि कि अच्छा होगा कि हम आपस में अपना रिश्ता समाप्त कर दें। यह कहकर वह सोहलिंगेम से विदा लेकर दूर जंगल की ओर उड़ चला और फिर कभी वापस लौट कर नहीं आया। का सोहलिंगेम अकेले दुःख से भरी सुबक-सुबककर रोती रही। वह फिर कभी अपने प्रिय प्रेमी से नहीं मिल सकी, परंतु आज भी उसकी याद में पीड़ा से कातर होकर उसे पीड़ा भरे करुण स्वर में आवाज लगाती रहती है।

इस कथा के माध्यम से खासी समाज की उस मनोवृत्ति की ओर संकेत मिलता है, जहाँ माता-पिता की इच्छा ही सर्वोपरि मानी जाती है और यह उम्मीद की जाती है कि संतानें अपने माता-पिता की सभी बातों को पूरी तरह मानेंगी।

(साभार : माधवेंद्र/श्रुति)

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