Dyushma Ki Bhakti: Lok-Katha (Karnataka)

द्युश्मा की भक्ति: कर्नाटक की लोक-कथा
बहुत समय पहले की बात है। देवगिरि पर्वत के समीप एक ब्राह्मण परिवार रहता था। ब्राह्मण की पत्नी का नाम था लक्ष्मी। यूँ तो परिवार खुशहाल था किंतु घर में संतान न थी।

विवाह के कई वर्ष बाद लक्ष्मी ने अपनी छोटी बहन द्युश्मा से ब्राह्मण का विवाह करवा दिया। द्युश्मा ने एक पुत्र को जन्म दिया।

द्युश्मा और लक्ष्मी माँ के लाड-प्यार में बालक बढ़ने लगा। कुछ समय बाद लक्ष्मी को लगने लगा कि ब्राह्मण केवल अपने पुत्र से प्यार करता है। वह उसी को अपना धन देगा। बस उसी दिन से वह द्युश्मा के पुत्र श्रीनिवास से जलने लगी।

इधर द्युश्मा इन बातों से अनजान थी। वह शिव-भक्‍त थी। दिन में चार-पाँच घंटे पूजा में बिताती थी। श्रीनिवास बड़ा हुआ तो एक सुंदर कन्या उसकी पत्नी बनी। द्युश्मा का पूजा-पाठ और भी बढ़ गया।

लक्ष्मी को एक दिन अपनी जलन मिटाने का अवसर मिल ही गया। श्रीनिवास नदी पर नहाने गया था। वह लौटा तो लक्ष्मी रोते-रोते बोली, ‘तुम्हारी पत्नी कुएँ में गिर गई।’

श्रीनिवास ने ज्यों ही कुएँ में झाँका तो लक्ष्मी ने उसे धक्का दे दिया। उसके बाद लक्ष्मी घर आ गई। द्युश्मा पूजा का प्रसाद बाँटने गई तो कुएँ पर भीड़ लगी थी। ईश्वर की कृपा से श्रीनिवास बच गया था।

वह माँ के साथ घर में घुसा तो लक्ष्मी उसे देखकर चौंक गई। लक्ष्मी ने उसे मारने की एक और योजना बनाई। रात को उसने दाल और चावल के जहरीले घोल से स्वादिष्ट दोसे तैयार किए। फिर बहुत प्यार से बोली, ‘ श्रीनिवास बेटा, मैंने यह तुम्हारे लिए बनाया है, आकर खा लो।’

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श्रीनिवास भी बड़ी माँ की भावना जान गया था। उसने अपने स्थान पर कुत्ते को रसोई में भेज दिया। लक्ष्मी की पीठ मुड़ते ही कुत्ता दोसा उठाकर चंपत हो गया। दोसा खाते ही उसने दम तोड़ दिया।

लक्ष्मी की सारी चालें नाकाम रहीं। तब उसने गुस्से में आकर पुत्र पर मूसल से वार किया। श्रीनिवास का सिर बुरी तरह घायल हो गया और वह बेहोश हो गया।

द्युश्मा अपने पूजा के कमरे में थी। शिव जी से लक्ष्मी की क्रूरता देखी न गई। वह प्रकट हुए और उसे शाप देने लगे।

द्युश्मा सब कुछ जान गई थी। फिर भी उसने शिव जी से बहन के प्राणों की भीख माँगी। शिव जी उसके दयालु स्वभाव और करुणा से अत्यधिक प्रसन्न हुए और बोले-

द्युश्मा, तुम जैसे व्यक्तियों से ही संसार में धर्म जीवित है। तुम्हारा पुत्र श्रीनिवास भला-चंगा हो जाएगा। मैं लक्ष्मी को भी क्षमा करता हूँ। तुम्हारी अखंड भक्ति के कारण आज से यह स्थान द्युश्मेश्वर कहलाएगा।’

सबने आँखें बंद कर प्रणाम किया तो शिव जी ओझल हो गए। श्रीनिवास भी यूँ उठ बैठा मानो नींद से जागा हो। लक्ष्मी के मन का मैल धुल चुका था। पूरा परिवार पुन: खुशी-खुशी रहने लगा।

वास्तव में मानव का मानव से सच्चा प्रेम हो ईश्तर-भक्ति है। तुम उसके बनाए प्राणियों से प्रेम करो, वह तुम्हें अपनाएगा।

(रचना भोला यामिनी)

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