Do-Mukhiya: Lok-Katha (Nagaland)

Nagaland Folktales in Hindi – नागा लोक कथाएँ

दो मुखिया: नागा लोक-कथा
(‘कोल्या’ नागा कथा)

‘कोल्या’ नामक जनजाति के उपकुल ‘मर्रम’ में गाँव के दो मुखिया होते हैं जबकि शेष अन्य जातियों में एक ही मुखिया की व्यवस्था है। मुर्रम का प्रथम मुखिया लगभग सभी अधिकार रखता है, जबकि द्वितीय को नाम मात्र के अधिकार ही प्राप्त होते हैं। मुर्रम आदिवासी इस सम्बन्ध में यह कथा कहते हैं –

प्राचीन काल में जब मुर्रम में भी एक ही मुखिया की व्यवस्था थी, पूर्व मुखिया के बड़े पुत्र को ही मुखिया बनाया जाता था। उस समय के मुखिया के पदाधिकारी दो पुत्र थे। उसका छोटा पुत्र जो बहुत शक्तिशाली तथा महान योद्धा था, अपने बड़े भाई से मुखिया होने का अधिकार छीन लेना चाहता था। उसने एक दिन अपने पिता से अनुरोध किया कि वह उसे मुखिया बना दे।

बूढ़े मुखिया के सामने विचित्र स्थिति उत्पन्न हो गयी, वह बड़े पुत्र का अधिकार छीनना नहीं चाहता था किन्तु छोटे की शक्ति से भी भयभीत था। बहुत विचार कर उसने एक योजना बनाई। उसने अपने बड़े पुत्र को बुलाया और उससे गुप्त रूप से शत्रु का सिर काट कर लाने के लिए कहा। बड़े पुत्र ने पिता की आज्ञानुसार शत्रु का सिर काटकर गाँव के निकट छिपा दिया।

बड़े पुत्र द्वारा ऐसा करने के बाद, मुखिया ने अपने दोनो पुत्रों को गाँव के सामने बुलाया तथा आदेश दिया, ‘तुम दोनो को शत्रु का सिर काटकर लाना है, जो व्यक्ति पहले यह कार्य पूरा करेगा, उसे मुखिया बनाया जाएगा।’ ऐसा कह कर उसने अपने दोनो पुत्रों को जाने का आदेश दिया। छोटा बेटा उस दिशा मे चल दिया जहां उसे आशा थी कि वह शीघ्र नरमुण्ड प्राप्त कर सकेगा। बड़ा पुत्र उस निश्चित स्थान पर गया जहां पहले से उसने नरमुण्ड छिपा रखा था, और शीघ्र ही वह नरमुण्ड लेकर गाँव में वापस पहुँच गया। उसे बूढ़े मुखिया ने विजेता घोषित करते हुए मुखिया का पद सौंप दिया।

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कुछ समय पश्चात छोटा पुत्र नरमुण्ड लेकर गाँव पहुँचा। बड़े भाई को वह मुखिया पद पर देखकर आश्चर्यचकित रह गया। बूढ़े मुखिया की यह योजना उसे संतुष्ट न कर सकी तथा वह मुखिया बनने की हठ पर अड़ा रहा। अन्ततः हार कर बूढ़े मुखिया ने उसे भी मुखिया बना दिया। इस प्रकार तब से मुर्रम मे दो मुखिया होते हैं।

(प्राचीन नागा जनजातियों में किसी भी विशेष कार्य को करने की योग्यता सिद्ध करने के लिये शत्रु का सिर काट कर लाना होता था, यही पुरुषों की वीरता का माप-दण्ड था।)

(सीमा रिज़वी)

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