Bholanath Ki Chalaki: Lok-Katha (Kashmir)

भोलानाथ की चालाकी: कश्मीरी लोक-कथा
कश्मीर में एक गाँव था। चिनार के लंबे-लंबे वृक्षों और मनमोहक झरनों के कारण उसकी खूबसूरती और भी बढ़ गई थी। उसी गाँव में रहता था ‘भोलानाथ’। नाम तो भोलानाथ था किंतु वह था बड़ा चतुर।

वह दिन-रात गाँववालों को ठगने की योजनाएँ बनाता रहता था। गाँववालों ने मिलकर एक सभा बुलाई। कई बुजुर्ग अपनी-अपनी काँगडियाँ लिए पहुँच गए। समावार (केतलीनुमा बर्तन जिसमें कोयले सुलगाकर चाय बनती है।) में गरम-गरम चाय तैयार थी। मुखिया ने सबको चेतावनी दी कि वे गलती से भी भोलानाथ की चिकनी-चुपड़ी बातों में न आएँ।

गाँववालों ने प्यालों में चाय सुड़की और लौट गए। इधर भोलानाथ के मन में नई खुराफात तैयार थी। वह सूफिया के घर जाकर बोला-

‘बहन, मेरी रिश्ते की आपा आई हैं पर सर्दी के मारे उनका बुरा हाल है। यदि एतराज न हो तो अपना फिरन दे दो। जल्दी ही लौटा दूँगा।’

सूफिया ने एक-दो पल सोचा और फिरन दे दिया। भोलानाथ ने इसी तरह बहाने से दो-तीन घरों से फिरन माँग लिया। चार-पाँच दिन बाद वह सूफिया के घर पहुँचा और एक की बजाए दो फिरन लौटाए। सूफिया बोली, “भाई भोलानाथ, यह छोटा फिरन तो मेरा नहीं है।’

‘बहन तुम्हारे फिरन ने रात ही इसे पैदा किया है। यह इसका बच्चा है तुम रख लो।’

सोफिया भला क्‍यों मना करती? उसने दोनों फिरन रख लिए। इसी तरह भोलानाथ ने जिस-जिस से फिरन माँगे थे। सबको दो-दो लौटाए। सबने सोचा कि भोलानाथ का दिमाग फिर गया। फिर भी मुफ्त का माल क्‍यों लौटाया जाए!

थोड़े दिनों बाद भोलानाथ ने एक और चाल चली। वह गाँववालों से जाकर बोला-

See also  जादुई मुर्गी

“कुछ विदेशी पर्यटकों को पश्मीने की शालों के नमूने दिखाने हैं। अपनी सभी शालें दे दो।’

गाँववालों ने सोचा कि यह दोबारा दो-दो शालें वापिस करेगा। सबने हँसकर पश्मीने की कीमती शालें उसे सौंप दीं।

कई महीने बीत गए। भोलानाथ ने शाल नहीं लौटाईं। गाँववाले एकत्र हुए और भोलानाथ के घर जा पहुँचे। वह जमीन पर गिरकर रोने लगा। सबने पुचकारकर अपने सामान के बारे में पूछा तो वह बोला- ‘क्या बताऊँ जी, सबकी शालों ने इस बार दो-दो छोटी शालें पैदा की थीं।’

सुनते ही गाँववाले मन-ही-मन खुश हो गए। भोलानाथ ने बात आगे बढ़ाई- ‘पर क्‍या बताऊँ, वे सब शालें कल रात अपने बच्चों को लेकर भाग गईं।’
“क्या ….?’ गाँववालों के मुँह खुले के खुले रह गए।

‘जी हाँ, मैं सच कहता हूँ।’ भोला ने आँसू पोंछते हुए कहा,
‘मामला गाँव के बुजुर्गों तक जा पहुँचा। उन्होंने भोला को बुलाकर पूछा तो वह शरारती स्वर में बोला-
‘शालें तो घर छोड़कर भाग गईं।’

भला शालें भी कभी चलती हैं, बुजुर्गों ने पूछा, “जी हाँ, बेशक चलती हैं। यदि वह बच्चे पैदा कर सकती हैं तो चल भी सकती हैं।”
सूफिया ने गुस्से से कहा, ‘भला शाल के भी बच्चे पैदा होते हैं?’
‘हाँ होते हैं, जैसे फिरन के पैदा हुए थे। तुमने ही तो रखे थे।’
भोलानाथ के जवाब ने सबको निरुत्तर कर दिया। उसने एक बार फिर सबको ठग लिया था।
बच्चो, चतुर अवश्य बनना पर भोलानाथ जैसा नहीं।

(रचना भोला ‘यामिनी’)

Leave a Reply 0

Your email address will not be published. Required fields are marked *