Abotani, Nyebi Dumpu Aur Nyeu Kipu : Folk Tale (Arunachal Pradesh)

आबोतानी, ञ्येबी दुम्पू और ञ्येऊ किपू (तागिन जनजाति) : अरुणाचल प्रदेश की लोक-कथा
कहा जाता है कि मादा हिरण और कुत्ते के बीच भाई-बहन का रिश्ता था। वे दोनों ही आबोतानी के साथ रहते थे। एक दिन आबोतानी ने दोनों को मछली पकड़ने के काम में लगा दिया। तागिन समाज में छोटी नदियों का प्रवाह अवरुद्ध करके तथा उसे दूसरी ओर मोड़कर मछली पकड़ने की पद्धति प्रचलित है। इसे तागिन में सअबोक पानम कहते हैं। उस दिन भी आबोतानी ने कुछ ऐसा ही करने के लिए दोनों को साथ ले लिया। नदी की धारा को रोककर दूसरी ओर मोड़ने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ती है। सो ञ्येबी दुम्पू (हिरण का नाम) और ञ्येऊ किपू (कुत्ते का नाम) को सामग्री जुटाने के काम में लगाकर आबोतानी नदी की धारा रोकने में व्यस्त हो गए। कुछ देर पश्चात् दोनों पशुओं को ठंड लगने लगी। ठंड से निजात पाने के लिए दोनों ने आग जलाई और आग सेंकने लगे। आग से निकलनेवाला धुआँ हिरण को परेशान कर रहा था। धुएँ से बचने के लिए उसने अपना मुँह एक ओर फेर लिया। इतने में आबोतानी नदी से बाहर आए। हिरण और कुत्ते को एक साथ आग सेंकते हुए देखकर आबोतानी को एक शरारत सूझी।

आबोतानी ने कुत्ते से कहा, “देखो ञ्येऊ किपू, ञ्येबी दुम्पू तुम्हारा चेहरा देखना पसंद नहीं करता है, इसलिए वह तुमसे मुँह फेरकर बैठा है।” आबोतानी की बात सुनकर ञ्येऊ किपू को बहुत गुस्सा आया कि आखिर हिरण को उसकी शक्ल से क्यों नफरत है। गुस्से में आकर उसने बहुत जोर से हिरण पर भौंकना शुरू किया। डर के मारे हिरण भागने लगा। आबोतानी के शरारती मन को इतने भर से संतुष्टि नहीं मिली। हिरण जैसे ही भागा, आबोतानी ने कुत्ते को उकसाया कि अगर उसमें दम है तो उस हिरण को पकड़कर दिखाए। सो अपनी योग्यता सिद्ध करने के लिए कुत्ते ने हिरण का पीछा करना शुरू किया। उसने हिरण का पीछा कहीं भी नहीं छोड़ा। उसी से तागिन समाज में यह प्रचलन आरंभ हुआ कि जब भी हिरण के शिकार के लिए जाते हैं तो कुत्तों को भी साथ लेकर चलते हैं। इसे तागिन में किरोक रोकनाम कहते हैं, अर्थात्—कुत्तों के सहारे हिरण का शिकार करना।

See also  Snow White and the Seven Dwarfs: Lok-Katha (German)

कुत्ते से पीछा छुड़ाने के लिए हिरण ने बड़े-से-बड़े पहाड़ों को लाँघा, विशाल नदियों को पार किया; परंतु ञ्येऊ किपू तो हाथ धोकर उसके पीछे पड़ गया था, क्योंकि उसके मालिक ने आदेश जो दे दिया था। भागते-भागते हिरण दअरी-दअगु नामक स्थान पर पहुँचा। दअरी-दअगु एक दैवीय स्थान है, जो अनाज की उत्पत्ति का स‍्रोत है। उस जगह का संरक्षण दअरी तामी किया करती थी। कुत्ते से पीछा छुड़ाने के लिए हिरण दअरी तामी के घर में घुस आया। घर के अंदर दअरी तामी ने अती (चावल का घोल, जिसे घंटों तक पानी भिगोकर फिर ओखली में कूटा जाता है) बनाकर रखा था। तेजी से भागकर आए हिरण ने उस अती के ऊपर छलाँग लगा दी। अती के ऊपर जोर से पैर पड़ने से अती के छींटे उसके पैर और छाती पर फैल गए। ऐसा माना जाता है कि उसी अती के लगने के कारण हिरण के पैर का निचला हिस्सा और छाती सफेद रंग के होते हैं, क्योंकि अती का रंग भी सफेद होता है।

हिरण का पीछा करते-करते कुत्ते ने जब दअरी तामी के घर में प्रवेश किया तो दअरी तामी ने उसे पकड़ लिया और बंधक बना लिया। तागिन समाज में लप्या नामक एक क्रूर प्रथा प्रचलित थी, जिसमें लकड़ी के टुकड़े में छेद करके एक पैर को उसमें फँसाया जाता है। यह प्रथा विशेषकर स्त्रियों के लिए प्रचलित थी। दअरी तामी ने भी ञ्येऊ किपी को लप्या नामक बेड़ी में बाँधकर रखा। बंधक बनाने के अतिरिक्त घर की निगरानी की जिम्मेदारी भी उसे सौंप दी। अब ञ्येऊ किपू का मुख्य काम यह था कि प्रतिदिन धूप में सुखाए जानेवाले धान को चिड़ियों के हमले से बचाना और घर की देखभाल करना। लेकिन एक दिन ञ्येऊ किपू को उस लप्या से छुटकारा मिल गया और दअरी तामी के घर से भागने का मौका भी मिल गया। दअरी तामी के घर से भागने से पहले ञ्येऊ किपू ने सोचा कि अपने मालिक आबोतानी के लिए क्या ले जाऊँ? बहुत सोचने के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि जिस अनाज की वह निगरानी कर रहा था, क्यों न वही ले जाए। सो अपने दोनों कानों के भीतरी हिस्सों में अनाज का एक-एक दाना छिपाकर वह वहाँ से भाग गया। आज भी यदि ध्यान से देखें तो कुत्तों के दोनों कानों के भीतरी हिस्सों में एक छोटी सी गाँठ जैसी बनी हुई प्रतीत होती है। माना जाता है कि उसी गाँठ में वह अनाज का दाना छिपाकर लाया था।

See also  Jadugar Nar : Lok-Katha (Assam)

अपने मालिक के पास पहुँचकर कुत्ते ने अनाज के दाने को उसे दिखाया। उस दाने को आबोतानी ने मिट्टी में बोया, जो कुछ दिनों बाद अंकुरित होकर पौधा बन गया और उस पौधे से अनाज की उत्पत्ति होने लगी। उसके बाद उस अनाज की वृद्धि इस प्रकार से होने लगी कि आबोतानी अनाज के धनी हो गए। ऐसा माना जाता है कि उसी घटना से मानव जाति को अनाज वरदान-स्वरूप प्राप्त हुआ है, जिसका सेवन आज भी मानव जाति करती है और उसी घटना के कारण तागिन लोगों के सबसे करीबी और प्रिय पालतू पशु का स्थान कुत्ते को प्राप्त है। इसलिए उसे इनसानों के समान घर में पाला जाता है और खूब खाना खिलाया जाता है। तागिन लोगों में ऐसी मान्यता है कि आज हम जिस चावल का नित्य सेवन करते हैं, वह कुत्ते द्वारा ही लाया गया था। कुत्ते आज भी इनसानों के सबसे वफादार पशु हैं।

(साभार : तारो सिंदिक)

Leave a Reply 0

Your email address will not be published. Required fields are marked *