Abotani Aur Taro: Folk Tale (Arunachal Pradesh)

आबोतानी और तारो (गालो जनजाति) : अरुणाचल प्रदेश की लोक-कथा
पहले जमाने में आबोतानी और तारो नाम के दो व्यक्ति रहते थे। दोनों एक साथ रहते हुए भी अपनी शक्ति या बुद्धि-बल का इस्तेमाल करके एक-दूसरे को बेवकूफ बनाते रहते थे। कहा जाए तो आबोतानी बहुत ही चालाक और चतुर व्यक्ति थे, जो अपने बल पर सबकुछ करना चाहते थे और तारो थोड़ा गँवार या बुद्धू किस्म का व्यक्ति था। इसलिए आबोतानी तारो की मानसिक दशा को जानकर अपनी चतुरता का इस्तेमाल किया करते थे। दोनों को आज ‘नानी’ और ‘नारो’ के नाम से भी जाना जाता है।

तारो (नारो) के पास एक बड़ा सूअर था। एक दिन आबोतानी नारो के पास गए और देखा कि उसके पास एक बड़ा सूअर है। उन्होंने उसे खाने के लिए एक उपाय सोचा। इसलिए उन्होंने एक दिन नारो को खेती में रहते देखकर, उसकी खेती के नीचे रहकर कुछ अलग सी आवाज में पुकारा—‘नानी रीमी रीमी-नारो रोमो रोमो’। जब इस तरह से उन्होंने बहुत बार पुकारा, तब नारो को बहुत चिंता होने लगी। वह घबराने लगा और सोचने लगा कि पहले तो इस तरह की आवाज कभी नहीं सुनी। वह आबोतानी के पास गया और दिन में जो घटना घटी, वह उन्हें बताई। तब आबोतानी ने बड़ी चतुराई से कहा, “लगता है, तुम्हारे परिवार में बड़ी मुसीबत आनेवाली है। इसलिए तुम अपने घर के सूअर को जलाकर खेतों के नीचे फेंक दो, तभी मुसीबत दूर हो पाएगी।” तारो ने आबोतानी की बातों पर यकीन कर ऐसा ही किया और आबोतानी उसी वक्त उसी तरह की आवाज में पुकारने लगे। तब तारो ने अपने सूअर को जलाकर खेत के नीचे फेंक दिया। आबोतानी उस सूअर को उठाकर अपने घर ले आए और उसे उनके परिवार ने जमकर खाया। आबोतानी के घर-परिवार के सभी जन खूब स्वस्थ हो गए। तारो को पता नहीं था कि यह आबोतानी का षड्यंत्र है, अतः वह खुश होकर आबोतानी के पास जा पहुँचा और कहा कि ‘अब वह आवाज सुनाई नहीं पड़ती है।’

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तारो दो-तीन दिन के बाद आबोतानी के घर आया और यह देखा कि उनका पूरा परिवार देखने में स्वस्थ है। इसलिए उसने आबोतानी से कहा, “यह तुमने क्या खिला दिया कि तुम्हारा परिवार इतना स्वस्थ हो गया?” आबोतानी ने कहा, “मैं क्या बताऊँ, यह करने के लिए बहुत ही कठिन है। लेकिन तुम अपने परिवार को स्वस्थ बनाना चाहते हो तो बताए देता हूँ कि पहले तुम पानी को खूब उबालना। फिर अपने परिवार को इकट्ठा कर एक नाली में बाँधकर रखना और उनके ऊपर उस उबले हुए पानी को डाल देना। इसके बाद उसे पाँच दिन तक वैसे ही रहने देना। फिर ये सब स्वस्थ हो जाएँगे।” तारो ने आबोतानी की बातों पर फिर विश्वास कर लिया और उसने घर जाकर वैसा ही किया, जैसा आबोतानी ने करने को कहा था। परंतु यह क्या! स्वस्थ होना तो दूर, वे तो सब पाँच दिनों में कीड़े बन चुके थे। तारो समझ गया कि आबोतानी ने मुझे धोखा दिया है। उसे इतना गुस्सा आया कि वह आबोतानी से हर हालत में बदला लेने का उपाय सोचने लगा।

एक दिन तारो एक दोफा (जहाँ सूअर को खाना देते हैं) बना रहा था तो आबोतानी उसके पास आ पहुँचे और पूछने लगे, “यह क्या बनाया है?” तारो ने उदास स्वर में कहा, “मैं तो बस सूअरों के लिए घर बना रहा हूँ।” फिर कहा, “तुम यहाँ लेटकर देखो कि मेरे सूअर तापो के लिए यह ठीक रहेगा या नहीं?” आबोतानी तारो की बातों में आकर उसमें लेट गए। उनके लेटते ही तारो ने तुरंत उस दोफा को बंद कर दिया और चारों तरफ से कीलें ठोंक दीं। इसके बाद उसने उस दोफा को नदी के बीच में फेंक दिया। आबोतानी अपने को बचाने के लिए चिल्लाते रहे, लेकिन किसी ने उनकी पुकार नहीं सुनी। अंत में एक चिड़िया को उनकी आवाज सुनाई दी और उसने उन्हें एक मधुमक्खी के रूप में बाहर निकाल दिया।

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(साभार : बिन्नू लिंगो)

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