हरा-भरा है देश

Anonymous Poems in Hindi – अज्ञेय रचना संचयन कविताएँ

हरे-भरे हैं खेत
मगर खलिहान नहीं :
बहुत महतो का मान-
मगर दो मुठ्ठी धान नहीं।
भरा है दिल
पर नीयत नहीं :
हरी है कोख-
तबीयत नहीं।

भरी हैं आँखें
पेट नहीं :
भरे हैं बनिये के काग़ज़-
टेंट नहीं।

हरा-भरा है देश :
रुँधा मिट्टी में ताप
पोसता है विष-वट का मूल-
फलेंगे जिस में शाप।

मरा क्या और मरे
इसलिए अगर जिये तो क्या :
जिसे पीने को पानी नहीं
लहू का घूँट पिये तो क्या;

पकेगा फल, चखना होगा
उन्हीं को जो जीते हैं आज :
जिन्हें हैं बहुत शील का ज्ञान-
नहीं हैं लाज।

तपी मिट्टी जो सोख न ले
अरे, क्या है इतना पानी?
कि व्यर्थ है उद्बोधन, आह्वान-
व्यर्थ कवि की बानी?

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