हमारा देश

Anonymous Poems in Hindi – अज्ञेय रचना संचयन कविताएँ

इन्हीं तृण फूस-छप्पर से
ढँके ढुलमुल गँवारू
झोंपड़ों में ही हमारा देश बसता है।
इन्हीं के ढोल-मादल बाँसुरी के
उमगते सुर में
हमारी साधना का रस बरसता है।
इन्हीं के मर्म को अनजान
शहरों की ढँकी लोलुप
विषैली वासना का साँप डँसता है।
इन्हीं में लहरती अल्हड़
अयानी संस्कृति की दुर्दशा पर
सभ्यता का भूत हँसता है।

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