शहतूत
Anonymous Poems in Hindi – अज्ञेय रचना संचयन कविताएँ
वापी में तूने
कुचले हुए शहतूत क्यों फेंके, लडक़ी?
क्या तूने चुराए-
पराये शहतूत यहाँ खाए हैं?
क्यों नहीं बताती?
अच्छा, अगर नहीं भी खाए
तो आँख क्यों नहीं मिलाती?
और तूने यह गाल पर क्या लगाया?
ओह, तो क्या शहतूत इसीलिए चुराए –
सच नहीं खाए?
शहतूत तो ज़रूर चुराए, अब आँख न चुरा !
नहीं तो देख, शहतूत के रस की रंगत से
मेरे ओठ सँवला जाएँगे
तो लोग चोरी मुझे लगाएँगे
और कहेंगे कि तुझे भी चोरी के गुर मैं ने सिखाये हैं!
तब, लडक़ी, हम किसे क्या बताएँगे!
कैसे समझाएँगे?
अच्छा, आ, वापी की जगत पर बैठ कर यही सोचें।
लडक़ी, तू क्यों नहीं आती?