वसीयत

Anonymous Poems in Hindi – अज्ञेय रचना संचयन कविताएँ

मेरी छाती पर
हवाएँ लिख जाती हैं
महीन रेखाओं में
अपनी वसीयत
और फिर हवाओं के झोंके ही
वसीयतनामा उड़ा कर
कहीं और ले जाते हैं।
बहकी हवाओ! वसीयत करने से पहले
हलफ़ उठाना पड़ता है
कि वसीयत करनेवाले के
होश-हवास दुरुस्त हैं :
और तुम्हें इसके लिए
गवाह कौन मिलेगा
मेरे ही सिवा?

क्या मेरी गवाही
तुम्हारी वसीयत से ज़्यादा टिकाऊ होगी?

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