मैं ने पूछा क्या कर रही हो

Anonymous Poems in Hindi – अज्ञेय रचना संचयन कविताएँ

मैं ने पूछा
यह क्या बना रही हो?
उस ने आँखों से कहा
धुआँ पोंछते हुए कहा :
मुझे क्या बनाना है! सब-कुछ
अपने आप बनता है
मैं ने तो यही जाना है।
कह लो मुझे भगवान ने यही दिया है।

मेरी सहानुभूति में हठ था:
मैं ने कहा: कुछ तो बना रही हो
या जाने दो, न सही-
बना नहीं रही-
क्या कर रही हो?
वह बोली: देख तो रहे हो
छीलती हूँ
नमक छिड़कती हूँ
मसलती हूँ
निचोड़ती हूँ
कोड़ती हूँ
कसती हूँ
फोड़ती हूँ
फेंटती हूँ
महीन बिनारती हूँ
मसालों से सँवारती हूँ
देगची में पलटती हूँ
बना कुछ नहीं रही
बनता जो है-यही सही है-
अपने-आप बनता है
पर जो कर रही हूँ-
एक भारी पेंदे
मगर छोटे मुँह की
देगची में सब कुछ झोंक रही हूँ
दबा कर अँटा रही हूँ
सीझने दे रही हूँ।
मैं कुछ करती भी नहीं-
मैं काम सलटती हूँ।

मैं जो परोसूँगी
जिन के आगे परोसूँगी
उन्हें क्या पता है
कि मैंने अपने साथ क्या किया है?

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