मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!

Anonymous Poems in Hindi – अज्ञेय रचना संचयन कविताएँ

प्रिय, मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!
बह गया जग मुग्ध सरि-सा मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!

तुम विमुख हो, किंतु मैंने कब कहा उन्मुख रहो तुम?
साधना है सहसनयना-बस, कहीं सम्मुख रहो तुम!
विमुख-उन्मुख से परे भी तत्त्व की तल्लीनता है-
लीन हूँ मैं, तत्त्वमय हूँ अचिर चिर-निर्वाण में हूँ!
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!

क्यों डरूँ मैं मृत्यु से या क्षुद्रता के शाप से भी?
क्यों डरूँ मैं क्षीण-पुण्या अवनि के संताप से भी?
व्यर्थ जिस को मापने में हैं विधाता की भुजाएँ-
वह पुरुष मैं, मत्र्य हूँ पर अमरता के मान में हूँ!
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!

रात आती है, मुझे क्या? मैं नयन मूँदे हुए हूँ,
आज अपने हृदय में मैं अंशुमाली को लिए हूँ!
दूर के उस शून्य नभ से सजल तारे छलछलाएँ-
वज्र हूँ मैं, ज्वलित हूँ, बेरोक हूँ, प्रस्थान में हूँ!
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!

मूक संसृति आज है, पर गूँजते हैं कान मेरे,
बुझ गया आलोक जग में, धधकते हैं प्राण मेरे।
मौन या एकांत या विच्छेद क्यों मुझ को सताये?
विश्व झंकृत हो उठे, मैं प्यार के उस गान में हूँ!
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!

जगत है सापेक्ष, याँ है कलुष तो सौंदर्य भी है,
हैं जटिलताएँ अनेकों-अंत में सौकर्य भी है।
किंतु क्यों विचलित करे मुझ को निरंतर की कमी यह-
एक है अद्वैत जिस स्थल आज मैं उस स्थान में हूँ!
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!

वेदना अस्तित्च की, अवसान की दुर्भावनाएँ-
भव-मरण, उत्थान-अवनति, दु:ख-सुख की प्रक्रियाएँ
आज सब संघर्ष मेरे पा गए सहसा समन्वय-
आज अनिमिष देख तुम को लीन मैं चिर-ध्यान में हूँ!
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!

See also  सिंदबाद जहाजी की तीसरी यात्रा-24

बह गया जग मुग्ध-सरि-सा मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!
प्रिय, मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!

Leave a Reply 0

Your email address will not be published. Required fields are marked *