महावृक्ष के नीचे

Anonymous Poems in Hindi – अज्ञेय रचना संचयन कविताएँ

जंगल में खड़े हो?
महारूख के बराबर
थोड़ी देर खड़े रहो
महारूख ले लेगा तुम्हारी नाप।
लेने दो।
उसे वह देगा तुम्हारे मन पर छाप।
देने दो।

जंगल में चले हो?
चलो चलते रहो।
महारूख के साथ अपना नाता बदलते रहो।
उस का आयाम
उस का है, बहुत बड़ा है।
पर वह वहाँ खड़ा है।
और तुम चलते हो चलते हुए ही भले हो।

वह महारूख है
अकेला है, वन में है।
तुम महारूख के नीचे-
अकेले हो, वन तुम में है।

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