पहला दौंगरा

Anonymous Poems in Hindi – अज्ञेय रचना संचयन कविताएँ

गगन में मेघ घिर आए।
तुम्हारी याद
स्मृति के पिंजड़े में बाँधकर मैंने नहीं रखी
तुम्हारे स्नेह को भरना पुरानी कुप्पियों में स्वत्व की
मैंने नहीं चाहा।
गगन में मेघ घिरते हैं
तुम्हारी याद घिरती है
उमड़कर विवश बूँदें बरसती हैं
तुम्हारी सुधि बरसती है-
न जाने अंतरात्मा में मुझे यह कौन कहता है
तुम्हें भी यही प्रिय होता। क्योंकि तुमने भी निकट से दु:ख जाना था
दु:ख सबको माँजता है
और चाहे स्वयं सबको मुक्ति देना वह न जाने, किंतु-
जिनको माँजता है
उन्हें यह सीख देता है कि सबको मुक्त रखें।
मगर जो हो
अभी तो मेघ घिर आए
पड़ा यह दौंगरा पहला
धरा ललकी, उठी, बिखरी हवा में
बास सोंधी मुग्ध मिट्टी की।
भिगो दो, आह
ओ रे मेघ, क्या तुम जानते हो
तुम्हारे साथ कितने हियों में कितनी असीसें उमड़ आई हैं?

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