निरस्त्र

Anonymous Poems in Hindi – अज्ञेय रचना संचयन कविताएँ

कुहरा था,
सागर पर सन्नाटा था :
पंछी चुप थे।
महाराशि से कटा हुआ
थोड़ा-सा जल
बन्दी हो
चट्टानों के बीच एक गढ़िया में
निश्छल था-
पारदर्श।

प्रस्तर-चुंबी
बहुरंगी
उद्भिज-समूह के बीच
मुझे सहसा दीखा
केंकड़ा एक :
आँखें ठंडी
निष्कौतूहल
निर्निमेष

जाने
मुझ में कौतुक जागा
या उस प्रसृत सन्नाटे में
अपना रहस्य यों खोल
आँख-भर तक लेने का साहस
मैंने पूछा : क्यों जी,
यदि मैं तुम्हें बता दूँ
मैं करता हूँ प्यार किसी को-
तो चौंकोगे?
ये ठंडी आँखें झपकेंगी
औचक?

उस उदासीन ने
सुना नहीं :
आँखों में
वही बुझा सूनापन जमा रहा।
ठंडे नीले लोहू में
दौड़ी नहीं
सनसनी कोई।

पर अलक्ष्य गति से वह
कोई लीक पकड़
धीरे-धीरे
पत्थर की ओट
किसी कोटर में
सरक गया

यों मैं
अपने रहस्य के साथ
रह गया
सन्नाटे से घिरा
अकेला
अप्रस्तुत
अपनी ही जिज्ञासा के सम्मुख निरस्त्र,
निष्कवच,
वध्य।

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