नाच

Anonymous Poems in Hindi – अज्ञेय रचना संचयन कविताएँ

एक तनी हुई रस्सी है जिस पर मैं नाचता हूँ।
जिस तनी हुई रस्सी पर मैं नाचता हूँ
वह दो खंभों के बीच है।
रस्सी पर मैं जो नाचता हूँ
वह एक खंभे से दूसरे खंभे तक का नाच है।
दो खंभों के बीच जिस तनी हुई रस्सी पर मैं नाचता हूँ
उस पर तीखी रोशनी पड़ती है
जिस में लोग मेरा नाच देखते हैं।
न मुझे देखते हैं जो नाचता है
न रस्सी को जिस पर मैं नाचता हूँ
न खंभों को जिस पर रस्सी तनी है
न रोशनी को ही जिस में नाच दीखता है :
लोग सिर्फ़ नाच देखते हैं।
पर मैं जो नाचता हूँ
जो जिस रस्सी पर नाचता हूँ
जो जिन खंभों के बीच है
जिस पर जो रोशनी पड़ती है
उस रोशनी में उन खंभों के बीच उस रस्सी पर
असल में मैं नाचता नहीं हूँ।
मैं केवल उस खंभे से इस खंभे तक दौड़ता हूँ
कि इस या उस खंभे से रस्सी खोल दूँ
कि तनाव चुके और ढील में मुझे छुट्टी हो जाए-
पर तनाव ढीलता नहीं
और मैं इस खंभे से
उस खंभे तक दौड़ता हूँ
पर तनाव वैसा बना ही रहता है
सब कुछ वैसा ही बना रहता है
और वही मेरा नाच है जिसे सब देखते हैं
मुझे नहीं
रस्सी को नहीं
खंभे नहीं
रोशनी नहीं
तनाव भी नहीं
देखते हैं-नाच!

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