दूर्वांचल

Anonymous Poems in Hindi – अज्ञेय रचना संचयन कविताएँ

पाश्र्व गिरि का नभ्र, चीड़ों में
डगर चढ़ती उमंगों-सी।
बिछी पैरों में नदी ज्यों दर्द की रेखा।
विहग शिशु मौन नीड़ों में
मैंने आँख भर देखा।
दिया मन को दिलासा- पुन: आऊँगा
(भले ही बरस-दिन-अनगिन युगों के बाद)
क्षितिज ने पलक-सी खोली
तमककर दामिनी बोली-
‘अरे यायावर! रहेगा याद?’

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