जीना है बन सीने का साँप

Anonymous Poems in Hindi – अज्ञेय रचना संचयन कविताएँ

हम ने भी सोचा था कि अच्छी चीज़ है स्वराज
हम ने भी सोचा था कि हमारा सिर
ऊँचा होगा ऐक्य में। जानते हैं पर आज
अपने ही बल के
अपने ही छल के
अपने ही कौशल के
अपनी समस्त सभ्यता के सारे
संचित प्रपंच के सहारे

जीना है हमें तो, बन सीने का साँप उस अपने समाज के
जो हमारा एक मात्र अक्षंतव्य शत्रु है
क्योंकि हम आज हो के मोहताज
उस के भिखारी शरणार्थी हैं।

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