कहाँ

Anonymous Poems in Hindi – अज्ञेय रचना संचयन कविताएँ

मंदिर में
मैं ने एक बिलौटा देखा :
चपल थीं उस की आँखें
और विस्मय-भरी
उस की चितवन :
और उस का रोमिल स्पर्श
न्यौतता था
सिहरते अनजान खेलों के लिए
जिन का आश्वासन था उस के
लोचीले बिजली-भरे तन में!

बाहर
यह एक अजनबी नारी है :
आँखों में स्तम्भित, निषेधता अँधेरा,

बदन पर एक दूरी का ठंडा ओप!

भद्रे तुम ने मेरा बिलौटा
कहाँ छिपा दिया?

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