कवि, हुआ क्या फिर

Anonymous Poems in Hindi – अज्ञेय रचना संचयन कविताएँ

कवि, हुआ क्या फिर
तुम्हारे हृदय में यदि लग गई है ठेस?
चिड़ी दिल की जमा लो मूँठ पर (ऐहे, सितम, सैयाद!)
न जाने किस झरे गुल की सिसकती याद में बुलबुल तड़पती है
न पूछो दोस्त, हम भी रो रहे हैं लिए टूटा दिल।
(‘मियाँ, बुलबुल, लड़ाओगे?’)
तुम्हारी भावनाएँ जग उठी हैं।
बिछ चलीं पनचादरें ये एक चुल्लू आँसुओं की डूब मर, बरसात!
सुनो कवि! भावनाएँ नहीं हैं सोता, भावनाएँ खाद हैं केवल
जरा उनको दबा रखो- जरा-सा और पकने दो, ताने और तपने दो
अँधेरी तहों की पुट में पिघलने और पचने दो;
रिसने और रचने दो-
कि उनका सार बनकर चेतना की धरा को कुछ उर्वरा कर दे;
भावनाएँ तभी फलती हैं कि उनसे लोक के कल्याण का अंकुर कहीं फूटे।
कवि, हृदय को लग गई है ठेस? धरा में हल चलेगा।
मगर तुम तो गरेबाँ टोहकर देखो
कि क्या वह लोक के कल्याण का भी बीज तुममें है।

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